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    आधुनिक दौर में भी संस्कारों की शिक्षा देता श्री गुरुकुल:यहां से पढ़कर देश-विदेश में ऊंचे पदों पर पहुंचे स्टूडेंट्स, महर्षि दयानंद सरस्वती ने देखा था सपना

    1 week ago

    आज के समय में जब हर माता-पिता अपने बच्चों को महंगे और हाई-टेक स्कूलों में भेजना चाहते हैं, तब भी राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में एक ऐसा गुरुकुल है, जो आधुनिक सुविधाओं की दौड़ में शामिल नहीं होकर भी श्रेष्ठ शिक्षा और संस्कार दे रहा है। यह है श्री गुरुकुल, जो आज से करीब 95 साल पहले शुरू हुआ था और आज भी उसी प्राचीन वैदिक पद्धति पर निःशुल्क शिक्षा दे रहा है। यहां से पढ़े हुए विद्यार्थी देश-विदेश में ऊंचे पदों पर कार्यरत हैं, लेकिन उनकी पहचान सिर्फ डिग्री से नहीं, बल्कि संस्कारों से होती है। श्री गुरुकुल: शिक्षा और संस्कारों का अनूठा संगम चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन के पास स्थित श्री गुरुकुल कोई आम स्कूल नहीं, बल्कि एक ऐसा संस्थान है जो वैदिक परंपरा और आर्य समाज की मूल भावना के अनुसार शिक्षा देता है। यहां पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को "ब्रह्मचारी" कहा जाता है और ये स्टूडेंट्स सिर्फ किताबों की पढ़ाई नहीं करते, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना सीखते हैं। उनका जीवन एकदम सरल और अनुशासित होता है। सुबह 4 बजे उठना, नियमित पूजा, शारीरिक व्यायाम, पढ़ाई, सेवा कार्य और रात 9 बजे तक सो जाना, यह इनका रोज़ का नियम है। यह गुरुकुल 39 बीघा जमीन में फैला हुआ है और यहां स्कूल से लेकर कॉलेज स्तर तक की पढ़ाई होती है। शिक्षा पूरी तरह हिंदी और संस्कृत माध्यम में होती है। हर साल करीब 35 से 50 विद्यार्थी यहां से पासआउट होते हैं, और अब तक 5 हजार से अधिक शिष्य यहां पढ़ चुके हैं। इतना सुनकर कोई यह न सोचे कि यहां पढ़ाई कमजोर होती है। इस गुरुकुल से निकले कई स्टूडेंट्स आज भारत सरकार, न्यायपालिका, शिक्षा संस्थानों और विदेशों में ऊंचे पदों पर कार्यरत हैं। गुरुकुल का इतिहास: एक सपना जो महर्षि दयानंद सरस्वती ने देखा था इस गुरुकुल की नींव रखने का सपना महर्षि दयानंद सरस्वती ने देखा था। जब वे 1883 में मेवाड़ के राजा सज्जन सिंह राणा के निमंत्रण पर चित्तौड़ आए थे, तब उन्होंने अपने शिक्षा आचार्य आत्मानंद से इस वीरभूमि के लिए कहा था - "चित्तौड़गढ़ वह पवित्र स्थल है, जहां धर्म और देश के प्रति समर्पण की प्रेरणा मिलती है। अगर यहां गुरुकुल स्थापित हो जाए तो यह देश युवाओं के लिए कल्याणकारी होगा।" हालांकि चित्तौड़ से जोधपुर जाते ही महर्षि दयानंद का निधन हो गया, लेकिन उनके शिष्यों ने उनका सपना पूरा किया। वर्ष 1930 में उनके शिष्य स्वामी व्रतानंद महाराज ने श्री गुरुकुल की स्थापना की। आज यह संस्थान 95 साल बाद भी पूरी मेहनत के साथ काम कर रहा है। गुरुकुल की परंपरा: शिष्य ही बनते हैं संचालक श्री गुरुकुल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे आज तक वही लोग संभालते आए हैं जो खुद इस गुरुकुल में पढ़ चुके हैं। हालांकि इसका फैसला श्री गुरुकुल महासभा द्वारा ही किया जाता हैं। आज इसकी जिम्मेदारी मंत्री एवं मुख्यधिष्ठता आचार्य चंद्रदेव निभा रहे हैं, जो कभी खुद इस गुरुकुल के स्टूडेंट रहे हैं और बाद में भारत सरकार में मुख्य लेखाधिकारी पद से रिटायर्ड हुए हैं। आर्य पाठ विधि से होती है शिक्षा यह गुरुकुल महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा बताया गया आर्य पाठ विधि और व्यवहार विधि पर आधारित है। यहां शिक्षा पूरी तरह हिंदी और संस्कृत माध्यम में दी जाती है। स्टूडेंट्स वेद, संस्कृत, गणित, इतिहास, सामान्य विज्ञान, योग, नैतिक शिक्षा और शारीरिक व्यायाम का प्रशिक्षण लेते हैं। शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और सेवा का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। यहां पढ़ने वाले बच्चे न केवल अच्छे स्टूडेंट बनते हैं, बल्कि अच्छे इंसान भी बनते हैं। स्कूल में होती निशुल्क पढ़ाई श्री गुरुकुल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह संस्थान स्वावलंबन पर आधारित है। यहां के बच्चों को शुद्ध और पोषक भोजन देने के लिए गुरुकुल परिसर में ही खेत और एक विशाल गोशाला है। इस गोशाला में 165 गायें हैं और इनके दूध से बच्चों का पोषण होता है। इसके अलावा 300 बीघा में फैला एक कृषि फार्म भी है जो बस्सी रोड पर स्थित है। वहां मौसमी सब्जियां, अनाज और फल उगाए जाते हैं। यह पूरी व्यवस्था दान और सहयोग से चलाई जाती है, कोई फीस या शुल्क नहीं लिया जाता। यहां से पढ़ कर निकले कई स्टूडेंट्स ने दुनिया में किया अपना नाम रोशन श्री गुरुकुल ने कई ऐसे स्टूडेंट्स को तैयार किया है जिन्होंने देश और विदेश में नाम रोशन किया है। वैसे तो इस गुरुकुल में पढ़े-लिखे कई शिष्य हैं। लेकिन यहां के पढ़े हुए लक्ष्मी नारायण पांडे जो अब तक 8 बार सांसद रह चुके हैं। इतना ही नहीं, शिष्य सत्यानंद वेदवागिश संस्कृत के बड़े जानकार है। जो वर्तमान में अमेरिका में प्रोफेसर है। इसके अलावा बीबीसी लंदन के रत्नाकर भारती, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के प्रभारी रहे मानव संसाधन मंत्रालय से रिटायर्ड प्रकाशचंद वेदांकर, आईओसी में चीफ जनरल मैनेजर रहे रामेश्वर उपाध्याय, एटा काॅलेज में हेड ऑफ द डिपार्टमेंट रामकृष्ण वर्णी, चंद्रशेखर शास्त्री, प्रोफेसर भानुप्रकाश, अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय शाहपुरा पीठ के पीठाधीश्वर संत 1008 रामदयाल महाराज, एमपी में न्यायाधीश से रिटायर्ड राजेंद्र शर्मा, राज्य सरकार में लेखाधिकारी पद से रिटायर्ड अभिमन्यु, शिवदत्त CA होकर खुद का कालाणी कंपनी, अमेरिका में उद्यमी वेदप्रकाश अर्जुनदेव शास्त्री, अमेरिका में प्रोफेसर डॉक्टर वीरदेव भिष्ट, अमेरिका में डॉक्टर सुरेंद्र भारद्वाज सहित अन्य कई इस गुरुकुल के शिष्य रह चुके हैं। गुरुकुल को शिष्यों द्वारा ही संचालित किया जाता है श्री गुरुकुल की खास परंपरा है कि इसका संचालन उन्हीं शिष्यों के हाथ में होता है, जिन्होंने कभी यहां शिक्षा पाई होती है। इस परंपरा की शुरुआत स्वामी व्रतानंद जी से हुई और फिर आचार्य यज्ञदेव ने इसे आगे बढ़ाया। आज गुरुकुल के प्रधानाचार्य और मुख्यधिष्ठाता हैं आचार्य चंद्रदेव, जिन्होंने खुद 1961 से 1969 तक यहां पढ़ाई की थी। आचार्य चंद्रदेव ने गुरु के आशीर्वाद से शुरू किया अपना सफर आचार्य चंद्रदेव गुजरात के राजकोट जिले के छोटे से गांव खोड़ापीपा से हैं। जब वे छोटे थे, तो अपने पिता कल्याण भाई पटेल के साथ महर्षि दयानंद की जन्मस्थली टंकारा गए थे, जहां स्वामी व्रतानंद जी से मुलाकात हुई। उनके कहने पर चंद्रदेव ने तीसरी कक्षा में श्री गुरुकुल में एडमिशन लिया। यहां की शिक्षा के बाद वे भारत सरकार के डाक विभाग में नौकरी में गए, फिर प्रमोशन पाकर दूरसंचार मंत्रालय में मुख्य लेखाधिकारी बने। 2013 में रिटायर होने के बाद वे वापस गुरुकुल लौटे और अब पूरे समर्पण से इसे चला रहे हैं। वे कहते हैं – > “जो कुछ मैंने जीवन में पाया है, वह मेरे गुरु और इस गुरुकुल की देन है।” संस्कार देने वाले आचार्य और सेवाभावी शिष्य गुरुकुल में शिक्षा देने वाले आचार्य भी कभी यहां के स्टूडेंट्स रहे हैं। इनमें सत्यकाम, हंसराज आर्य, इंद्रदेव विद्याभूषण, बद्रीनाथ चतुर्वेदी, संकेत मुनि, मनुदेव आर्य, हीरानंद शास्त्री, वीरेश्वर अभय रामेश्वर शर्मा, वेदपाल आर्य (नेपाल मूल) मुख्य है। इन सभी ने शिक्षा प्राप्त करने के बाद खुद को इसी गुरुकुल की सेवा में समर्पित कर दिया है। देश और विदेश से जुड़े रहते हैं पुराने स्टूडेंट्स आज भी श्री गुरुकुल के पुराने स्टूडेंट्स देश-विदेश में रहते हुए इस संस्थान से जुड़े हुए हैं। वे विशेष अवसरों पर गुरुकुल आते हैं, दान करते हैं, सेवाएं देते हैं और बच्चों को मार्गदर्शन भी देते हैं। यह संबंध सिर्फ पढ़ाई तक नहीं, जीवनभर का बन जाता है। आधुनिक युग में भी प्राचीन शिक्षा की जड़ों से जुड़ा गुरुकुल जब पूरी दुनिया आधुनिकता की दौड़ में लगी है, तब चित्तौड़गढ़ का श्री गुरुकुल हमें यह सिखाता है कि शिक्षा सिर्फ किताबें पढ़ने का नाम नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला, सेवा, अनुशासन और संस्कारों का नाम है। यह गुरुकुल एक उदाहरण है कि संवेदनशील, संस्कारित और सशक्त नागरिक सिर्फ स्मार्ट क्लास से नहीं, बल्कि सच्चे ज्ञान और आत्मबल से बनते हैं।
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